Friday, January 1, 2010

ग़ज़ल

वो हंसे तो
फिर खत्म उदासी के आलम हो गये |
वो मिले हम भी जीने वालों में शामिल हो गये |

जब लबों पे उनके आये हरफ़ कुछ मेरे नाम के ,
शब्द इस बेमतलब को भी मतलब हासिल हो गये |

ढूंढता ही रहता था मंजिल रोज़ नयी से नयी ,
वो चले जब साथ मेरे रस्ते ही मंजिल हो गये |

होंठ थे जो माहिर बहुत छुपाने में दिल के ज़खम ,
आज वो इजहार-ए-इश्क में भी कामिल हो गये |

बंज़र दिल के आंगन में बरसे जब अशक प्यार के,
यूं लहर उछली छोटे पलकों के साहिल हो गये |

1 comment:

  1. बेहतर...
    ये वर्ड़ वेरिफ़िकेशन हटा दो दोस्त...

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