ग़ज़ल
वो हंसे तो फिर खत्म उदासी के आलम हो गये |
वो मिले हम भी जीने वालों में शामिल हो गये |
जब लबों पे उनके आये हरफ़ कुछ मेरे नाम के ,
शब्द इस बेमतलब को भी मतलब हासिल हो गये |
ढूंढता ही रहता था मंजिल रोज़ नयी से नयी ,
वो चले जब साथ मेरे रस्ते ही मंजिल हो गये |
होंठ थे जो माहिर बहुत छुपाने में दिल के ज़खम ,
आज वो इजहार-ए-इश्क में भी कामिल हो गये |
बंज़र दिल के आंगन में बरसे जब अशक प्यार के,
यूं लहर उछली छोटे पलकों के साहिल हो गये |
वो हंसे तो फिर खत्म उदासी के आलम हो गये |
वो मिले हम भी जीने वालों में शामिल हो गये |
जब लबों पे उनके आये हरफ़ कुछ मेरे नाम के ,
शब्द इस बेमतलब को भी मतलब हासिल हो गये |
ढूंढता ही रहता था मंजिल रोज़ नयी से नयी ,
वो चले जब साथ मेरे रस्ते ही मंजिल हो गये |
होंठ थे जो माहिर बहुत छुपाने में दिल के ज़खम ,
आज वो इजहार-ए-इश्क में भी कामिल हो गये |
बंज़र दिल के आंगन में बरसे जब अशक प्यार के,
यूं लहर उछली छोटे पलकों के साहिल हो गये |
बेहतर...
ReplyDeleteये वर्ड़ वेरिफ़िकेशन हटा दो दोस्त...